ख़्वाह-म-ख़्वाह


बिजली चली जाती है
बसें देरी से आती हैं
बोरियत फैल जाती है
चावल ख़त्म हो जाते हैं
मोबाइल बंद पड़ जाता है
दात दुखने लगता है
रात के ढाई बजते हैं
चप्पल टूट जाती है
कलम गुम होता है
तुम्हारे निकलने का वक़्त होता है
ख़्वाह-म-ख़्वाह

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